पहले पूरे वर्ष महिलाएं बड़ी बेसब्री के साथ सावन मास आने का इंतजार किया करते थे गांव में महिलाओं की टोलियां रस्सी के सहारे पेड़ों की डाल पर झूला डाल कर दिन भर झूला करती थी.
शाम को पारंपारिक सावन गीत गाते हुए घर को चलती थी सावन महीने के शुरू होते ही नवविवाहित युवतियां अपनी ससुराल से पीहर आ जाती थी गांव की अपनी संग सहेलियों के साथ सावन मास में पढऩे वाले अनेकों तीज त्योहारों और झूला झूलती समय अपनी यादों को साझा करते हुए गांव में गुजारे हुए पलों और बचपन की यादों में खो जाती थी
आधुनिकता की दौड़ मे लोगों का जीवन इतना व्यस्त हो गया है कि सदियों पहले हमारे पूर्वजों द्वारा डाली गई पर्व त्योहारों की परंपराओं तक की कद्र की परवाह नहीं रह गई है एक समय था जब सावन मास के आते ही घर के आंगन और चबूतरो पर खड़े पेड़ों की डलों पर झूले पड जाते थे
महिलाए गीत मलहार गाते हुए झूला झूलने का आनंद लेते थे धीरे-धीरे आधुनिकता के चलते कम होती पेड़ों की संख्या आंगन और बग्गी चमके सुकृति क्षेत्रफल खपरैल और कच्चे मकानों की जगह लिए खड़ी बहुमंजिला इमारतों के बीच लोगों की व्यस्तता की वजह से त्योहारों की परंपरा इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह गए.
आधुनिकता की दौड़ मे लोगों का जीवन इतना व्यस्त हो गया है कि सदियों पहले हमारे पूर्वजों द्वारा डाली गई पर्व त्योहारों की परंपराओं तक की कद्र की परवाह नहीं रह गई है एक समय था जब सावन मास के आते ही घर के आंगन और चबूतरो पर खड़े पेड़ों की डलों पर झूले पड जाते थे
महिलाए गीत मलहार गाते हुए झूला झूलने का आनंद लेते थे धीरे-धीरे आधुनिकता के चलते कम होती पेड़ों की संख्या आंगन और बग्गी चमके सुकृति क्षेत्रफल खपरैल और कच्चे मकानों की जगह लिए खड़ी बहुमंजिला इमारतों के बीच लोगों की व्यस्तता की वजह से त्योहारों की परंपरा इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह गए.
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