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भारत की तिब्बती सीक्रेट फोर्स से कांपा चीन, एक कमांडो शहीद होने पर खुला राज



भारत में तिब्बितयों की एक ऐसी सीक्रेट फोर्स है जिसको लेकर चीन कांप रहा है। पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर भारत-चीन तनाव को 4 महीने हो गए हैं और अब भारत ने चीन की कमजोर नब्ज को भी दबाना शुरू किया है। भारत में रह रहे तिब्बती शरणार्थियों से बनी सीक्रेट फोर्स जिसके बारे में अब तक कभी खुलकर बात नहीं हुई, अब यही फोर्स चीन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रही है।

भारत ने भी आधिकारिक तौर पर अब तक इस सीक्रेट फोर्स की बात नहीं की लेकिन आज को इस फोर्स के शहीद कमांडो को अंतिम विदाई देने बीजेपी के सीनियर नेता राम माधव भी पहुंचे। भारत माता की जय के नारों के बीच तिरंगा और तिब्बती झंडा साथ लहरा रहा था।

यह इसका साफ संकेत है कि अब भारत ने चीन की दुखती रग यानी तिब्बत के जरिए भी चीन पर दबाव बनाना शुरू किया है। यह भारत की बदलती रणनीति और पॉलिसी में बदलाव का भी संकेत है।

29-30 अगस्त की रात को जब चीन ने पैंगोंग झील के दक्षिण किनारे में घुसपैठ की कोशिश की तो भारतीय सेना ने न सिर्फ इसे नाकाम किया बल्कि उन अहम चोटियों पर पहुंच गए जिसके बाद यहां भारत की स्थिति मजबूत हो गई। इसमें भारत की सीक्रेट फोर्स यानी स्पेशल फंट्रियर फोर्स (एसएफएफ) के कमांडो भी शामिल थे। भारत की सरहदों की रक्षा की अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए एसएफएफ के कमांडो नेईमा तेंजिंग की इसी दौरान एक बारुदी सुरंग फटने से मौत हो गई। यह शहादत उन्होंने भारत की रक्षा के लिए दी। सोमवार को लेह में उन्हें पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई।

अंतिम विदाई के दौरान एसएफएफ की विकास बटालियन के बैनर भी लोग हाथ में लिए हुए थे। भारत माता की जय के साथ ही तिब्बत देश की जय के नारे लगातार गूंजते रहे। अंतिम विदाई में बीजेपी के सीनियर नेता राम माधव भी शामिल हुए। इसके जरिए भारत सरकार ने एक तरह से चीन को साफ संकेत भी दे दिया। यह संदेश तिरंगे और तिब्बती झंडे साथ लहराने के साथ और स्पष्ट हुआ।

दरअसल एसएफएफ में भारत में रह रहे तिब्बती रिफ्यूजी हैं और तिब्बत चीन की दुखती रग है। 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के तुरंत बाद इस स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को बनाया गया। भारत-चीन युद्ध के तुरंत बाद उस वक्त इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर रहे बी. एन. मलिक ने यह सुझाव दिया कि तिब्बती लड़ाकों की फोर्स तैयार की जाए। जब यह फोर्स बनी तो इसका नाम इस्टेब्लिशमेंट-22 था। उस वक्त करीब 5-6 हजार तिब्बती लड़ाकों की भर्ती हुई। उस वक्त उनका मकसद यह भी था कि तिब्बत को चीन से मुक्त कराना है। बाद में इसका नाम बदलकर स्पेशल फ्रंटियर फोर्स कर दिया गया। यह फोर्स कैबिनेट सचिवालय के अंडर आती है और सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है। इसका हेड आईजी होता है जो आर्मी के मेजर जनरल रैंक का अधिकारी होता है।

शुरूआत में इस सीक्रेट फोर्स में सिर्फ तिब्बती रिफ्यूजी ही थे लेकिन अब इसमें गोरखा जवान भी शामिल हैं। इसकी यूनिट को विकास बटालियन कहा जाता है। अभी कुल 7 विकास बटालियन हैं। इनके बारे में जानकारी सीक्रेट रखी जाती है इसलिए कौन कहां पर तैनात है, कितने जवान हैं, इन सब की कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिलती। इस सीक्रेट फोर्स ने 1971 युद्ध में भी पाकिस्तान को सबक सिखाया था। गोल्डन टैंपल में चलाए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार, कारगिल युद्ध और कई काउंटर इनसरजेंसी ऑपरेशन में भी सीक्रेट फोर्स के कमांडोज ने हिस्सा लिया। यह एक सीक्रेट फोर्स है इसलिए अब तक इस पर खुलकर बात नहीं होती थी। लेकिन जिस तरह से अब एसएफएफ के कमांडो को अंतिम विदाई दी गई उससे यह साफ है कि सीक्रेट फोर्स को भारत अब उतना सीक्रेट नहीं रखना चाहता। क्योंकि यह सीक्रेट फोर्स चीन को सिर्फ एलएसी पर ही धूल नहीं चटा रही बल्कि उनके दिमाग में भी अब डर पैदा कर रही है।

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