
ऐसा पहली बार हुआ कि खामोशियों की जगह जेल की ऊंची दीवारों में तालियों की आवाज बाहर आ रही है. रोने की जगह लोग खिलखिला कर तालियां पीटते हुए हंस रहे थे. बीच-बीच में गानों की धुन पर थिरकने को भी मजबूर हो रहे थे. इस बार जेल में न तो कोई कातिल मिला नहीं कोई बदमाश नजर आ रहा था. पहली बार था कि जेल में आरोपी अपराध भूलकर झूमते नाचते दिखाई दिए. परिवार से 8 माह तक मुलाकात के बिना 2750 लोगों के चेहरे पर जो चमक थी, वह किसी दीपावली की रोशनी से कम नहीं थी.
जिला जेल अधीक्षक विजय विक्रम सिंह ने जेल में बंद बंदियों को कोरोना काल में तनाव से दूर रखने के लिए अनूठे प्रयोग किए. पहली बार जिला जेल में बंदियों के द्वारा रामलीला का मंचन किया गया और अब परिवार से मुलाकात बंद होने के चलते बंदी तनाव में आ रहे थे. इससे बचाने के लिए जेल अधीक्षक ने जेल प्रीमियम लीग का आयोजन किया.

इसके तहत हर बैरक और अहाते की टीम बनाई गई और रोजाना दो से तीन मैच कराए जा रहे हैं. जिस बैरक का मैच होता है, वहां के सभी बंदी मैदान पर आ जाते हैं. अपनी-अपनी टीम का मनोबल बढ़ाने के लिए तो कभी हूटिंग करते हैं. कभी ताली बजाकर हौंसला बढ़ा रहे हैं. बरेली की जिला जेल सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक क्रिकेट का स्टेडियम बन चुकी होती है.
जेल पुलिसकर्मी अम्पायर बनकर जीत और हार का फैसला करते हैं. जेल अधीक्षक की पहल पर जेल में बंद लोगों के चेहरे पर जो मुस्कुराहट आती है उनके परिवार से मुलाकात की कमी को काफी हद तक पूरा कर देती है.

बरेली जेल प्रशासन के इस कदम की तारीफ करते हुए स्थानीय लोगों की मांग है कि इस तरह के कार्यक्रम यूपी भर की जेलों में होने चाहिए ताकि बंदियों को अवसाद से दूर रखा जा सके. आपको निचे दी गयी ये खबरें भी बहुत ही पसंद आएँगी।
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