
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप पर एक फैसला सुनाते हुए कहा कि शादीशुदा होते हुए गैर पुरुष के साथ पति-पत्नी की तरह रहना लिव इन रिलेशन नहीं है, बल्कि यह अपराध की श्रेणी में आता है. यह आदेश जस्टिस एसपी केशरवानी और जस्टिस डॉ. वाईके श्रीवास्तव की बेंच ने हाथरस जिले के ससनी थाना क्षेत्र की निवासी आशा देवी और अरविंद की याचिका को खारिज करते हुए दिया है.
याचिकाकर्ता आशा देवी की शादी महेश चंद्र के साथ हुई है. दोनों के बीच तलाक नहीं हुआ है. लेकिन, वो अपने पति से अलग दूसरे पुरुष (अरविंद) के साथ पति-पत्नी की तरह रहती है. कोर्ट ने कहा कि यह लिव इन रिलेशनशिप नहीं है, बल्कि दुराचार का अपराध है, जिसके लिए पुरुष अपराधी है. याचिकाकर्ता का कहना था कि वह दोनों लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. उन्हें उनके परिवार वालों से सुरक्षा प्रदान की जाए.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि शादीशुदा महिला के साथ धर्म परिवर्तन कर लिव इन रिलेशनशिप में रहना भी अपराध है. अवैध संबंध बनाने वाला पुरुष अपराधी है. कोर्ट ने कहा कि परमादेश विधिक अधिकारों को लागू करने या संरक्षण देने के लिए जारी किया जा सकता है, किसी अपराधी को संरक्षण देने के लिए नहीं. यदि अपराधी को सुरक्षा देने का आदेश दिया गया है तो यह अपराध को संरक्षण देना होगा. कानून के खिलाफ कोर्ट अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता.
जो पुरुष किसी विवाहित महिला के साथ लिव इन रिलेशन में रह रहा है, वह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-494 (पति या पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करना) और 495 (पहले से की गई शादी को छिपाकर दूसरी शादी करना) के तहत दोषी होगा. इसी प्रकार से धर्म परिवर्तन करके शादीशुदा के साथ रहना भी अपराध है.
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