
उत्तर भारत में पूरे जोशों खरोश के साथ मनाया जाता है 'लोहड़ी' का त्यौहार। आपको बता दें मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाने वाल लोहड़ी का त्यौहार धर्म के लिहाज़ से काफी महत्वपूर्ण है और देश के अलग अलग हिस्स्सों में अलग अलग तरीकों और मान्यताओं के साथ मनाया जाता है।
ये एक तरह से खुशियाँ बांटने का त्यौहार है जिसमे लोग शाम को घरों के बाहर अलाव जलाते है और इकट्ठा होकर आग के किनारे बैठ कर इस त्यौहार को मनाते है। इसके साथ ही रेवड़ी , मूंगफली और गजक आदि बांटकर खाया जाता है।
अग्नि को इस त्यौहार में मुख्य देवता माना जाता है और इसलिए तिल से अग्नि की पूजा के बाद इसके चारों ओर गीत गाये जाते है और ख़ुशी में नाचा भी जाता है। बड़े बुजुर्ग तो शायद लोहड़ी मनाने की महत्ता जानते है पर शायद आज की पीढ़ी इस त्यौहार के बारे में इतना नहीं जानती तो आईये आज जानते है की क्यों मनाया जाता है लोहड़ी का त्यौहार।
पुरानी मान्यताओं के अनुसार हिन्दू धर्म में लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से 'त्योहार' (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है।
यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में 'खिचड़वार' और दक्षिण भारत के 'पोंगल' पर भी-जो 'लोहड़ी' के समीप ही मनाए जाते हैं-बेटियों को भेंट जाती है। पंजाबी समुदाय में भी लोहड़ी पर्व विशेष महत्व रखता है। इस दिन बच्चे टोलियाँ बनाकर घर -घर जाकर लकड़ियाँ इकठ्ठा करते है और रात को होलिका दहन की तरह ही लकड़ियाँ जलाकर खूब भंगड़ा किया जाता है गीत गए जाते है।
पंजाब प्रान्त में भी इस पर्व को लेकर एक कथा खूब प्रचलित है की मुग़ल काल में दुल्ला भट्टी नामक युवक पंजाब लड़कियों की रक्षा की थी। मुगलों के आतंक में बहुत सी लड़कियों को अमीर सौदागरों को बेचा जा रहा था और दुल्ला भट्टी ने इन लड़कियों को आजाद करवा कर उनकी शादी हिन्दू समाज में कराई थी।
लोहड़ी के मौके पर लोग दुल्ला भट्टी को एक नायक के तौर पर याद करते है और गीत गाते है।किसानों के लिए भी ये त्यौहार काफी महत्वपूर्ण है और किसान रबी की फसल आने की ख़ुशी में देवताओं का शुक्रिआदा करते है और ख़ुशी मनाते है।
यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में 'खिचड़वार' और दक्षिण भारत के 'पोंगल' पर भी-जो 'लोहड़ी' के समीप ही मनाए जाते हैं-बेटियों को भेंट जाती है। पंजाबी समुदाय में भी लोहड़ी पर्व विशेष महत्व रखता है। इस दिन बच्चे टोलियाँ बनाकर घर -घर जाकर लकड़ियाँ इकठ्ठा करते है और रात को होलिका दहन की तरह ही लकड़ियाँ जलाकर खूब भंगड़ा किया जाता है गीत गए जाते है।
पंजाब प्रान्त में भी इस पर्व को लेकर एक कथा खूब प्रचलित है की मुग़ल काल में दुल्ला भट्टी नामक युवक पंजाब लड़कियों की रक्षा की थी। मुगलों के आतंक में बहुत सी लड़कियों को अमीर सौदागरों को बेचा जा रहा था और दुल्ला भट्टी ने इन लड़कियों को आजाद करवा कर उनकी शादी हिन्दू समाज में कराई थी।
लोहड़ी के मौके पर लोग दुल्ला भट्टी को एक नायक के तौर पर याद करते है और गीत गाते है।किसानों के लिए भी ये त्यौहार काफी महत्वपूर्ण है और किसान रबी की फसल आने की ख़ुशी में देवताओं का शुक्रिआदा करते है और ख़ुशी मनाते है।
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