
मैं एक रूढ़िवादी पृष्ठभूमि से आने वाली 20 साल की लड़की हूं। परिवार में मेरा व्यवहार हमेशा से ही बहुत शांत किस्म का रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि तमाम बंधनों के बाद मुझे ही पढ़ने-लिखने की अनुमति मिली थी। हालांकि, लड़कों के साथ न मिलने, शाम को छह बजे से पहले घर आने जैसे सामान्य प्रतिबंध मुझ पर लगे थे। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मैं दूसरे बच्चों की तरह अपनी लाइफ इंजॉय नहीं करना चाहती थी, लेकिन मैं कभी भी अपने परिवार के खिलाफ जाने का नहीं सोच सकती थी। यही एक वजह भी है कि मैं छोटी-छोटी चीजों में ही अक्सर खुश हो जाती थी।
ऐसे में जब मैं 18 साल की हुई, तो मेरी चचेरी बहन का निकाह मेरे कजिन के साथ पक्का हो गया। घर में काफी समय बाद शादी हो रही थी, जिसकी वजह से हमारे आसपास का माहौल एकदम से बदल गया। हम सभी न केवल होने वाली दुल्हन के लिए खुश थे बल्कि फैमिली गैदरिंग से लेकर पकवान बनाने और शॉपिंग करने तक एक ही समय में हम बहुत सारी चीजों का अनुभव भी कर रहे थे। हां, वो बात अलग है कि मैं अपने चचेरे भाइयों के बिल्कुल भी करीब नहीं थी। ऐसा इसलिए भी क्योंकि वह शहर में काम करते थे और हम सभी एक छोटी सी जगह पर रहते थे।
ऐसे में शादी से पहले की रस्मों को पूरा करने के लिए एक तारीख पक्की की गई। यह पहला मौका था, जब निकाह से पहले एक ही छत के नीचे रहने के बावजूद मैं अपने कजिन भाई से मिल रही थी। इस खास दिन के लिए मैंने भी एक खूबसूरत सलवार सूट बनवाया था, जिसके साथ मैंने मैचिंग के झुमके भी लिए। कहने की जरूरत नहीं है कि हम सभी खुश थे, खासकर मैं कुछ ज्यादा ही। ऐसा इसलिए भी क्योंकि मैंने हाल ही में अपनी परीक्षाएं अच्छे नंबरों के साथ उत्तीर्ण की थीं। देखते ही देखते शादी वाला दिन भी नजदीक आ गया।
खुशी बस पल भर की
हमारे परिवार में यह बहुत ही सामान्य था कि निकाह से पहले कोई भी होने वाली दुल्हन से नहीं मिलता था। ऐसा इसलिए क्योंकि महिलाओं से हमेशा ही बेहद शर्मीले होने की उम्मीद की जाती थी न कि समाजिक। ऐसे में हम में से कोई भी दुल्हन से नहीं मिला था। हम सभी अपने चचेरे भाई के साथ बैठ गए। वह भी इस दौरान काफी घबराया हुआ लग रहा था।
निकाह का समय पास आया और मेहमान भी आने लगे। इस दौरान मैं भी अच्छे से सज-संवकर तैयार हो गई। हालांकि, मुझे देखते ही मेरी मां ने कहा कि एक दिन मुझे भी कोई अच्छा लड़का अपने साथ ले जाएगा। लेकिन मैंने यह कहते हुए टाल दिया कि ‘मुझे अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है।’ इस बात को सुनकर मेरी मां धीमे से मुस्कुराई। मेरी कहानी: वह मेरे साथ संबंध बनाना चाहता है, लेकिन शादी करने को तैयार नहीं है: मैं क्या करूं?
एक झटके में सब बदल गया
जब दुल्हन को बाहर बुलाने की बात आई, तो मेरी चाची दौड़ी-दौड़ी कमरे से बाहर आईं। वह मेरी मां की बांह पकड़कर उन्हें अपने साथ अंदर ले गईं। मैं यह सब चुपचाप देख रही थी। लेकिन मैंने इस पर ज्यादा विचार नहीं किया था। ऐसा इसलिए भी क्योंकि मैं शादी की एक सुखद शाम का आनंद लेने में कुछ ज्यादा ही व्यस्त थी।
करीब आधे घंटे बाद मेरी मां और पिता ने मुझे जल्दी से अपने कमरे में आने के लिए कहा। उन्होंने मुझे बताया कि दुल्हन कहीं नहीं है। मैं एकदम से चौंक गई। इस पर मैंने तुरंत पूछा, ‘अब क्या?’ जिस पर उन्होंने मुझसे धीरे से कहा कि मुझे अब अपने चचेरे भाई से शादी करनी होगी।
अपने पैरेंट्स से इन बातों को सुनकर मानों मेरे नीचे की जमीन खिसक गई हो। मैं एकदम से रोने लगी। क्योंकि मुझे पता था कि एक बार मेरे माता-पिता ने जो निर्णय ले लिया, उससे वह कभी पीछे हटने वाले नहीं हैं। मैं पढ़ना चाहती थी। मैं कॉलेज जाना चाहती थी। मैं अपने लिए कुछ करना चाहती थी। लेकिन मैं किसी भी सूरत में पत्नी बनने के लिए तैयार नहीं थी।
मैंने अपने पिता से भीख मांगी
यह सब सुनकर मेरी आंखों से आंसू छलक रहे थे। मेरी मां भी इस दौरान खूब रोई। उन्होंने मेरे चेहरे को हल्के मेकअप और घूंघट से सजाते हुए तैयार किया। हालांकि, इस दौरान मेरी मौसी और चाचा ने मुझसे कुछ नहीं कहा। क्योंकि वह दोनों ही काफी राहत महसूस कर रहे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि इस तरह की घटना की स्थिति में उनके परिवार की प्रतिष्ठा धूमिल नहीं होगी। मैं अपने लिए लड़ना चाहती थी। मैंने अपने पिता के पैर की उंगलियों पर अपना सिर रखा। मैंने उनसे शादी न करने की भीख मांगी, लेकिन उन्होंने मुझसे एक शब्द भी नहीं कहा। मेरी कहानी: मुझे उस आदमी से प्यार हो गया जिसकी पत्नी का चक्कर मेरे पति के साथ चल रहा था
मेरे भाई ने भी मना नहीं किया
मैं जानती थी कि इस मामले में मेरा कजिन ही कुछ कर सकता है। वह चाहे तो इस निकाह को कबूल न करके मुझे बचा सकता है। लेकिन उस पर भी पारिवारिक दबाव था। उसने भी पवित्र शब्दों का उच्चारण करके हमारी शादी को हमेशा के लिए सील कर दिया। मेरी आंखों में पूरे समय आंसू थे।
निकाह के बाद जब मैंने अपने पति की तरफ देखा, तो उनके चेहरे पर वही निराशा और अविश्वास था। परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए हम दोनों को ही बरगलाया (बहकाना) गया था। वह मुझसे बहुत बड़े हैं। कम से कम हम दोनों के बीच आठ से नौ साल का अंतर है।
मेरे कोई सपने नहीं
मेरी शादी को एक महीना हो गया है। अब मैं उनके साथ शहर में रहती हूं। मैंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। मैं सारा दिन घर पर रहती हूं। मैं अपनी कुछ किताबें अपने साथ लाई थीं, जो मेरे पास एकमात्र सांत्वना थी। लेकिन अब उन्हें भी देखने की इच्छा नहीं होती है। भाग्य ने मुझ पर एक अविश्वसनीय मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। मैंने अपना सब कुछ खो दिया। मेरे अब कोई सपने नहीं हैं। इन्हे भी जरूर पढ़ें
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