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बिहार के सरकारी स्कूलों का गंदा सच, पढ़ते हैं प्राइवेट में, योजना का लाभ लेते हैं सरकार से




मेरे गांव से लगभग 200 से 400 बच्चे पढ़ने के लिए आसपास के प्राइवेट स्कूलों में जाते हैं. रोज सुबह-सुबह प्राइवेट स्कूल मालिक द्वारा बस या अन्य वाहन भेजा जाता है. टाई बेल्ट और प्रॉपर ड्रेस पहनकर बच्चे स्कूल के लिए सुबह निकलते हैं और दोपहर लौटते हैं. गांव में बदलाव हो रहा है यह सकारात्मक संदेश है. लेकिन जितने भी बच्चे प्राइवेट स्कूल जाते हैं उन सभी बच्चों का नाम सरकारी स्कूलों के रजिस्टर में भी दर्ज है. आसान भाषा में कहा जाए कि यह बच्चे पढ़ने के लिए तो प्राइवेट स्कूल में जाते हैं लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए इनके माता-पिता द्वारा इनका नाम सरकारी स्कूल में भी दर्ज करवाया जाता है. स्कूल के हेड मास्टर और बच्चों के अभिभावक के बीच एक अंडरस्टैंडिंग होने से जबरदस्त घोटाला हो रहा है… यह कहानी सिर्फ बिहार के एक गांव की नहीं बल्कि पूरे बिहार का है…

राजकीय कन्या मध्य विद्यालय अदालतगंज का छात्र सोनू कुमार (बदला नाम) कक्षा पांच में नामांकित है। वहीं, सोनू कुमार कृष्णानगर के एक निजी स्कूल में कक्षा पांचवीं में पढ़ता है। मध्य विद्यालय गोलघर में सातवीं कक्षा में नामांकित प्रियंका कुमारी (बदला नाम) अशोक राजपथ स्थिति एक निजी स्कूल में पढ़ती है। यह स्थिति केवल इन दो स्कूलों के छात्र या छात्राओं की नहीं है, बल्कि ज्यादातर स्कूलों का यही हाल है। बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो राज्यभर के हर जिले के स्कूलों में यह देखा गया है कि 15 से 20 फीसदी बच्चे सरकारी के साथ-साथ निजी स्कूलों में भी नामांकित हैं।

ऐसे में ये बच्चे सरकारी स्कूल में कभी-कभार ही आते हैं। लोहियानगर मध्य विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि सरकारी योजना का लाभ लेने के लिए जब बच्चों की सूची तैयार की जाती है तो अनुपस्थित बच्चों के अभिभावक आकर जबरदस्ती नाम जुड़वाते हैं। मना करने पर स्कूल में हंगामा करते हैं, क्योंकि पोशाक योजना का लाभ उन्हीं बच्चों को मिलना है, जिनकी उपस्थित 70 फीसदी से अधिक है। यह स्थिति ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में ज्यादा है। कई जिलों से ऐसे बच्चों की रिपोर्ट है, जिन्होंने शिक्षा के अधिकार के तहत 25 फीसदी गरीब बच्चों की आरक्षित सीट पर निजी स्कूलों में नामांकन लिया है। ऐसे बच्चे सरकारी स्कूलों में दाखिला लेकर योजना का लाभ भी लेते हैं। राज्य भर में ऐसे बच्चे लगभग दस फीसदी हैं।

नौवीं में नामांकन लेने में होती है सुविधा

निजी स्कूल में आठवीं तक की पढ़ाई तो हो जाती है, लेकिन इसके बाद अगर नौवीं में सरकारी स्कूल में नामांकन कराना होता है तो सरकारी स्कूल की टीसी काम आती है। क्योंकि निजी स्कूल की टीसी पर नौवीं में दाखिला नहीं मिलेगा। बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो राज्य भर के सभी निजी स्कूलों को ई-संबंधन में रजिस्ट्रेशन आवश्यक है, लेकिन ज्यादातर निजी स्कूल रजिस्ट्रेशन नहीं करवाते हैं, क्योंकि रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद उन्हें 25 फीसदी गरीब बच्चों का नामांकन लेना होगा। ई-संबंधन में रजिस्ट्रेशन नहीं करवाने वाले स्कूलों की टीसी को मान्यता नहीं है। ऐसे में सैकड़ों बच्चे सरकारी स्कूल में नामांकन करवाते हैं जिससे नौवीं कक्षा में दाखिला लेना आसान हो।

अनुपस्थित छात्र की रिपोर्ट तैयार नहीं करते टोला सेवक

सरकारी स्कूल में अनुपस्थिति छात्र व छात्राओं के घर जाकर बच्चों की समीक्षा करनी है। बच्चे स्कूल क्यूं नहीं आते हैं, इसका पता करना है। अभिभावकों को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए जागरूक करना है। कोरोना काल में ही टोला सेवकों को इसकी रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेवारी सौंपी गई थी लेकिन रिपोर्ट तैयार नहीं की गई है।

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