---Third party advertisement---

जब ममता बनर्जी ने गुस्से में अटल बिहारी वाजपेयी के टेबल पर रख दी थीं इंसान की हड्डियां


ममता बनर्जी भारतीय राजनीति का वो चेहरा हैं जो अपने गुस्से और जिद्दी स्वभाव के लिए भी जानी जाती हैं. ममता अगर कुछ ठान लें तो उसे पूरा करके ही दम लेती हैं. वह भारत के राजनीतिक इतिहास की सबसे सफल महिला राजनेताओं में से एक हैं. उनके इरादे बुलंद हैं. तब ही तो वह 13 साल से पश्चिम बंगाल की सत्ता में हैं. बंगाल जो कभी लेफ्ट पार्टियों का गढ़ हुआ करता था, ममता ने उसे अपना किला बना दिया है. ममता के राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से हुई, लेकिन दीदी को तो एकला चलो रे की राह पर चलना था. उन्होंने 1998 में तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. ममता कांग्रेस से अलग तो हुईं, लेकिन उनके संबंध कभी उस पार्टी से खराब नहीं हुए. यही नहीं ममता आज भले ही भारतीय जनता पार्टी की विरोधी हैं, लेकिन वह इसी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में भी मंत्री रह चुकी हैं.

हालांकि, बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही ममता के गुस्से का शिकार होना पड़ा है. ममता जब वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री थीं तब हर दिन कोई ना कोई मुसीबत खड़ी हो जाती थी. वह अपनी बात मनवाने के लिए अड़ जाती थीं. ममताकभी मंत्रालय के बंटवारे को लेकर नाराज हो जातीं तो कभी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर.

पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर ममता की नाराजगी तो इतनी थी कि उन्हें मनाने के लिए जॉर्ज फर्नांडिस को कोलकाता भेजा गया था. जॉर्ज इंतजार करते रहे लेकिन ममता ने मुलाकात नहीं की. इसके बाद एक दिन अचानक तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ममता बनर्जी के कोलकाता स्थित घर पहुंच गए. ममता तब अपने आवास पर नहीं थीं. वाजपेयी ने ममता की मां के पैर छू लिए और कहा कि आपकी बेटी बहुत शरारती है. बहुत तंग करती है. इसके बाद ममता बनर्जी का गुस्सा मिनटों में उतर गया.



ममता बनर्जी और अटल बिहारी वाजपेयी (फोटो-पीटीआई)

इसके बाद जनवरी 2001 में देश ने एक बार फिर ममता बनर्जी का गुस्सा देखा. दरअसल, पश्चिम बंगाल के हामिद नापुर के छोटा अंगाड़िया इलाके में हिंसा हो गई थी. इसमें टीएमसी के 11 समर्थक मारे गए थे. हिंसा का आरोप सीपीएम पर लगा. ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टी की सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर रही थीं. लेकिन वाजपेयी सरकार में कोई सुनवाई नहीं हुई.

ममता वाजपेयी से मिलने दिल्ली पहुंचीं. वह अपने झोले में से हड्डियां और खोपड़ियां निकालने लगीं. ये सब वह वाजपेयी के टेबल पर रख दीं. वाजपेयी हैरान रह गए. उन्होंने समझ नहीं आया कि ये क्या हो रहा है. फिर वाजपेयी ने ममता से कहा कि ये तो गंभीर मामला है. लेकिन राष्ट्रपति शासन लगाना तो गृह मंत्रालय का काम है. उनकी सिफारिश पर ही कैबिनेट फैसला लेगी. इसलिए आप आडवाणी से मिल लीजिए. फिर ममता आडवाणी से मिलीं. आडवाणी ने सीबीआई जांच के आदेश दे दिए.
एक किस्सा ये भी…

ममता बनर्जी कितना भी नाराज हों अटल बिहारी उन्हें मना लिया करते थे. उन्होंने ममता से एक बार ये तक कह दिया था कि जब तक आप मेरी बात नहीं मानेंगी मैं खाना नहीं खाऊंगा. दरअसल 2001 में तहलका मैगजीन ने कारगिल शहीदों के लिए ताबूत की खरीद को लेकर एक स्टिंग ऑपरेशन किया था. रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिज थे. ममता ने उनका इस्तीफा मांगा था. फर्नांडिंग को मंत्रीपद से इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन ममता के लिए ये काफी नहीं था. सिर्फ 17 दिन रेल मंत्री रहने के बाद ममता बनर्जी ने भी मंत्रीपद से इस्तीफा दे दिया. वह एनडीए से अलग हो गईं.

तब वाजपेयी ने ममता बनर्जी से कहा कि आप अपना इस्तीफा वापस लीजिए. ममता ने साफ मना कर दिया. वाजपेयी ने कहा कि आप मंत्रीपद मत लीजिए लेकिन सरकार का तो हिस्सा रहिए. ममता नहीं मानीं. वाजपेयी भी अड़ गए. उन्होंने ममता से कहा कि जब तक आप मेरे मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होंगी मैं खाना नहीं खाऊंगा. लेकिन ममता मानने को तैयार नहीं थीं. अटल भी अड़े हुए थे. 3 घंटे हो गए अटल बिहारी कुछ नहीं खाए. आखिरकार ममता को झुकना पड़ा और वाजपेयी मंत्रिमंडल में शामिल हुईं.

Post a Comment

0 Comments