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माली और नाई के बेटे जीत रहे पदक, दिहाड़ी मजदूर की बेटी कर रही ओलम्पिक की तैयारी: गोल्ड मेडल जीतने वाले UP के बच्चों ने कहा – हमारा पूरा ख़र्च उठा रही है सरका


उत्तर प्रदेश के लखनऊ में 34वीं राज्य स्तरीय बेसिक बाल खेल प्रतियोगिता 15 फरवरी, 2024 से शुरू हो कर 17 फरवरी को समाप्त हुई थी। इस प्रतियोगिता में पूरे प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्तर के अधिकतम 14 वर्ष की उम्र के हजारों छात्र-छात्राओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। खेलों में योगा, कबड्डी, बास्केटबॉल, जिमनास्टिक, क्रिकेट, खो-खो और दौड़ आदि के साथ लोकगीत जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन हुआ। मार्च 2024 में इन छात्रों को गौतम बुद्ध नगर के समाज कल्याण विभाग ने सम्मानित किया।

ऑपइंडिया ने इस प्रतियोगिता में जीत कर आए कुछ विजेता छात्रों से नोएडा में बात। सभी जातियों के अधिकतर छात्र बेहद गरीब घरों से थे जिन्होंने सरकार से मिली मदद और विभाग से मिले सहयोग को अपनी जीत का आधार बताया। हमने जिले के समाज कल्याण अधिकारी और छात्रों के अलावा शिक्षकों एवं ट्रेनरों ने भी बात की। उन्होंने बताया कि सभी ने मिल कर शासन के निर्देशों का शत-प्रतिशत अनुपालन किया। इस अनुपालन के रिजल्ट के तौर पर बेहद गरीब घरों से भी तमाम ऐसी प्रतिभाएँ निकल कर सामने आईं जो भविष्य में खेल क्षेत्र में भारत का नाम रोशन कर सकती हैं।
दिहाड़ी मजदूर की बेटी नेहा खेलना चाहती हैं ओलम्पिक

सरकारी स्कूल के कक्षा 6 में पढ़ने वाली नेहा के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। नेहा ने जिम्नास्टिक में गोल्ड मेडल जीता है। नेहा ने बताया कि उनके सर (टीचर) लोग उनका बहुत सपोर्ट करते हैं। उन्होंने अपनी जीत का श्रेय भी अपने टीचरों और ट्रेनर को दिया। नेहा ओलम्पिक में खेल कर भारत के लिए जिम्नास्टिक का स्वर्ण पदक लाना चाहती हैं। उनकी आदर्श दीपा कर्माकर हैं।
माली के बेटे को बास्केटबॉल का गोल्ड मेडल

जूनियर हाईस्कूल में कक्षा 6 के छात्र विपिन कुमार के पिता बागवानी करने वाले माली हैं। विपिन को बास्केटबॉल में गोल्ड मेडल मिला है। कक्षा 6 में पढ़ने वाले विपिन पारिवारिक हालातों को देख कर हर दिन 1 से ढाई घंटे के बीच प्रैक्टिस करते हैं। विपिन को पढ़ाई और खेल दोनों में बराबर रूचि है। उन्होंने कहा कि उनके खेल ट्रेनर ने उनकी बहुत मदद की। मेडल को विपिन ने अपने टीचरों और ट्रेनर के मार्गदर्शन का फल बताया।
माइकल जॉर्डन बनना है टाइल्स ठेकेदार के बेटे को

बास्केटबॉल में स्वर्ण पदक जीतने वाले आदित्य सोनी हमसे बात करते हुए भावुक हो गए। उन्होंने बताया कि उनके पिता टाइल्स का काम करते हैं। आदित्य के मुताबिक, उनको नोएडा से लखनऊ लाने और ले जाने के साथ रहने, खाने-पीने का बहुत अच्छा इंतजाम उनके स्कूल के टीचरों ने किया था। आदित्य को खेलने के लिए सभी सामान भी स्कूल में उपलब्ध हो रहे हैं। बड़े हो कर आदित्य बास्केटबॉल में माइकल जॉर्डन से अच्छा खिलाड़ी बनने की चाहत रखते हैं।
पदक विजेता टीम
खेल पर एक पैसा नहीं ख़र्च होता रौनक के पापा का

बास्केटबॉल में गोल्ड जीत का आए रौनक कन्नौजिया के पापा प्राइवेट कम्पनी में काम कर कर परिवार पालते हैं। रौनक हमें बताते हैं कि उनके टीचरों और कोच ने उनकी बहुत मदद की। खेलने के लिए सभी सामान भी रौनक के मुताबिक उनके कोच उपलब्ध करवाते हैं जिसकी वजह से उनके पापा की जेब पर भार नहीं पड़ता। यहाँ तक कि रौनक का के कोच उनकी डाइट का भी पूरा ध्यान रखते हैं। रौनक के अनुसार, उनके खेल से पढ़ाई में कोई बाधा नहीं आती। रौनक की टीम के पियूष गुप्ता के गले में भी गोल्ड मेडल लटक रहा था। पियूष ने हमें बताया कि उनकी जीत से उनके घर में ख़ुशी का माहौल है।
मिठाई बेचने वाले के बेटे को भी स्वर्ण

बास्केटबॉल की स्वर्ण पदक विजेता टीम में प्रियांशु भी शामिल हैं। प्रियांशु के पिता हलवाई (मिठाई बनाने के कारीगर) हैं। प्रियांशु ने बताया कि उनको उनके कोच और टीचरों ने पॉजिटिव सोच दी। साथ ही खेल के सभी संसाधन भी उपलब्ध करवाए गए। प्रियांशु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल पर भारत के लिए पदक जीतना चाहते हैं।
अभय के पिता दुनिया में नहीं, माँ का सपना करेंगे पूरा

गले में बास्केटबॉल मैच का स्वर्ण पदक डाले अभय के पिता काफी समय पहले ही चल बसे थे। पिता के देहांत के बाद माँ ने छोटे-मोटे घरेलू काम करके उनकी परवरिश की। सरकारी स्कूल के छात्र अभय का कहना है कि अगर उनके टीचर और कोच इतना सहयोग न करते तो शायद वो इस मुकाम पर न होते। अभय के खेल के सामानों आदि का पूरा खर्च उनके कोच और स्कूल से मिलता है। अभय को अभी विश्वस्तरीय खेलों में हिस्सा ले कर भारत का नाम रोशन करना है।
नाई का बेटा गोल्ड मेडल विजेता

बास्केटबॉल की स्वर्ण पदक विजेता टीम में अनुकूल भी शामिल दिखे। अनुकूल के पिता सैलून चलाते हैं। अनुकूल मेडल जीत का खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर वो हार भी जाते तो और कड़ी प्रैक्टिस कर के दुबारा मेडल जीतते।

राजमिस्त्री और किराने की दुकान वालों की बेटियों के गले में भी स्वर्ण

जिम्नास्टिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली नोएडा की 11 वर्षीया कोमल के पिता राजमिस्त्री हैं। वो दिहाड़ी पर लोगों के मकानों में चिनाई का काम करते हैं। कोमल अपनी पढ़ाई और खेल दोनों को एक साथ आगे ले जाना चाहती हैं। वहीं जिम्नास्टिक में उनके साथ स्वर्ण जीतने वाली एक अन्य बच्ची के पिता भी राजमिस्त्री हैं। 10 साल से छोटी एक गोल्ड-मेडलिस्ट बच्ची के पिता परचून की दुकान चलते हैं। वहीं एक अन्य जिम्नास्ट बच्ची के पिता प्राइवेट कम्पनी में काम करते हैं। इन सभी ने बताया कि उनको टीचरों और कोच द्वारा खेलों में पैसे से ले कर खाने-पीने तक की पूरी मदद की गई।
घर से भले ही गरीब लेकिन प्रतिभा कूट-कूट कर

ऑपइंडिया ने जिम्नास्टिक और बास्केटबॉल में गोल्ड मेडल जीत कर आए बच्चों की PTI (फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर) गीता भाटी से बात की। उन्होंने बताया कि भले ही विजेता बच्चे आर्थिक रूप से उतने सक्षम नहीं है लेकिन इन सभी में खेल की प्रतिभाएँ कूट-कूट कर भरी हुई हैं। गीता ने कहा कि उन्होंने शासन के निर्देश के अनुसार बच्चों को न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक तौर पर भी मजबूत किया है। PTI ने उम्मीद जताई है कि भविष्य में ये बच्चे वैश्विक स्तर पर खेलों में भारत का नाम रोशन करेंगे।

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