अकबर बीरबल की अक्लमंदी की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उसे विचित्र कार्य सौंपा करते थे. ऐसा कर उन्हें अति आनंद की प्राप्ति की होती है.
एक दिन दरबार में राजकीय कार्यवाही के मध्य अचानक अकबर बीरबल से बोले, "बीरबल!
इस राज्य के चार सबसे बड़े मूर्खों को हमारे सामने हाज़िर करो. हम तुम्हें एक महीने का समय देते हैं. तुरंत इस काम में लग जाओ."
अकबर का आदेश सुन बीरबल आश्चर्यचकित हुआ. किंतु वह था तो अकबर का मुलाज़िम ही. उनका हर हुक्म बजाना उसका फ़र्ज़ था. वह तुरंत चार मूर्खों की तलाश में निकल पड़ा.
एक माह पूर्ण होने के ऊपरांत वह दो व्यक्तियों के साथ अकबर के समक्ष उपस्थित हुआ. अकबर की दृष्टि जब दो व्यक्तियों पर पड़ी, तो वे बिफ़र गये, "बीरबल! ये क्या तुम दो ही मूर्खों को लेकर आये हो? हमने एक महीने का वक़्त तुम्हें चार मूर्ख लाने के लिए दिया था."
"हुज़ूर! मेरी गुज़ारिश है कि अपना गुस्सा शांत रखिये और मेरी पूरी बात सुने बगैर किसी नतीज़े पर मत पहुँचिये." बीरबल अकबर का गुस्सा शांत करते हुए बोला.
बीरबल (Birbal) की बात सुन अकबर का गुस्सा कुछ ठंडा हुआ.
"जहाँपनाह! ये रहा पहला मूर्ख. इसकी मूर्खता का वर्णन सुनेंगे, तो आप भी सोचेंगे कि ऐसे लोग भी होते हैं इस दुनिया में." पहले व्यक्ति को आगे कर बीरबल बोला.
"बताओ. ऐसी क्या मूर्खता कर रहा था ये?" अकबर ने पूछा.
"हुज़ूर! मैंने इस व्यक्ति को बैलगाड़ी पर बैठकर कहीं जाते हुये देखा. बैलगाड़ी चालक के अतिरिक्त बैलगाड़ी पर बैठा ये अकेला व्यक्ति ही था. तिस पर भी इसने अपनी गठरी सिर पर लाद रखी थी. चकित होकर जब मैंने कारण पूछा. तो ये कहने लगा कि गठरी बैलगाड़ी पर रख दूंगा, तो बैल के ऊपर बोझ बढ़ जायेगा. इसलिए मैंने गठरी अपने सिर पर रख ली है. अब इसे मूर्खता नहीं कहेंगे, तो क्या कहेंगे."
पहले व्यक्ति की मूर्खता का क़िस्सा सुनकर अकबर के चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई.
फिर बीरबल ने दूसरे व्यक्ति को आगे किया और बोला, "जहाँपनाह! ये आदमी तो इससे भी बड़ा मूर्ख है. एक दिन मैंने देखा कि ये अपने घर की छत पर भैंस लेकर जा रहा है. मुझे आश्चर्य हुआ, तो मैंने पूछ लिया. लेकिन फिर इसका जवाब सुनकर मैंने तो अपना सिर ही पीट लिया. इसने बताया कि इसके घर की छत पर घास उग आई है. इसलिए ये भैंस को छत पर ले जाता है, ताकि वह वहाँ घास खा सके. घास काटकर ये भैंस को लाकर खिला सकता है. लेकिन ये मूर्ख भैंस को ही छत पर ले जाता है. ऐसा मूर्ख कहीं देखा है आपने?"
"हम्म, वाकई इन दोनो की कारस्तानी बेवकूफ़ाना है. अब बाकी के दो मूर्खों को पेश करो." अकबर बोले.
"हुज़ूर! नज़र उठाकर देखिये तीसरा मूर्ख आपको सामने खड़ा दिखाई पड़ेगा." बीरबल बोला.
"कहाँ बीरबल? हमें तो यहाँ कोई तीसरा व्यक्ति दिखाई नहीं पड़ रहा." अकबर इधर-उधर देखते हुए बोले.
"तीसरा मूर्ख मैं हूँ हुज़ूर." बीरबल सिर झुकाकर बोला, "अब देखिये. मुझे पर कितने महत्वपूर्ण कार्यों की ज़िम्मेदारी है. लेकिन सब कुछ एक तरफ़ हटाकर मैं एक महीने से मूर्खों को खोज रहा हूँ. ये मूर्खता नहीं तो और क्या है?"
बीरबल की बात सुनकर अकबर सोच में पड़ गए, फिर बोले, "और चौथा मूर्ख कहाँ है बीरबल?"
"गुस्ताखी माफ़ हुज़ूर, पर चौथे मूर्ख आप हैं. आप हिंदुस्तान के शहंशाह है. इतने बड़े साम्राज्य का भार आपके कंधों पर है. प्रजा के हित के जाने कितने कार्य आपको करवाने हैं. लेकिन उन सबको दरकिनार कर आप एक महीने से मुझसे चार मूर्खों की तलाश करवा रहे हैं. तो चौथे मूर्ख आप हुए ना…" कहते हुए बीरबल ने अपने कान पकड़ लिए.
बीरबल का जवाब सुनकर अकबर को अपनी गलती का अहसास हो गया कि बेफ़िजूल में उन्होंने अपना और बीरबल का काफ़ी वक़्त बर्बाद कर लिया है.
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