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यूपी में पहले 2 फेज की 16 सीटों पर इतनी कम वोटिंग! किसे होने जा रहा नुकसान



UP Lok sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर उत्तर प्रदेश में सियासी माहौल अपने चरम पर है. मालूम हो कि इस बार उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में मतदान होना है, जिनमें से पहले दो फेज की 16 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. बता दें कि यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं और अब 64 सीटों पर बाकी पांच चरणों में मतदान होना है. 

आपको बता दें कि चुनाव आयोग इस बीच पहले दो फेज में हुई वोटिंग का सीट वाइज पूरा डेटा जारी किया है. चुनाव आयोग की ओर से जारी हुए डेटा को देख पता चलता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार पहले दो चरण की 16 सीटों पर करीब 3 से 11 फीसदी तक का डिक्लाइन होता नजर आ रहा है. खबर में आगे तफ्सील से जानिए पहले और दूसरे फेज में यूपी की 16 सीटों पर हुए मतदान से क्या संकेत मिल रहे हैं?

पहले फेज 8 सीटों का आंकड़ा देख क्या पता चला?
गौरतलब है कि पहले फेज के चुनाव में यूपी की जिन 8 सीटों पर मतदान हुआ उनमें सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत शामिल हैं. इस बार चुनाव में सहारनपुर में 66.14 फीसदी, कैराना में 62.46, मुजफ्फरनगर में 59.13, बिजनौर में 58.73, नगीना में 60.75, मुरादाबाद में 62.18, रामपुर में 55.85 और पीलीभीत में 63.11 फीसदी मतदान हुआ. आपको बता दें कि इस बार पिछली बार के मुकाबले पहले पहले चरण की सभी 8 सीटों पर 3 से लेकर 9 फीसदी तक कम मतदान हुआ है. वोटिंग के इस पैटर्न को देख पता चल रहा है कि चुनाव को लेकर लोगों में इस बार उतना उत्साह नहीं, जितना पिछली बार था. यही कारण है कि इस बार मतदान प्रतिशत में गिरावट आई है.

दूसरे चरण की ये है तस्वीर
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में उत्तर प्रदेश के अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ और मथुरा लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ. अमरोहा में 64.58, मेरठ में 58.94, बागपत में 56.16, गाजियाबाद में 49.88, गौतमबुद्धनगर में 53.63, बुलंदशहरमें 56.42, अलीगढ में 56.93 और मथुरा में 49.41 फीसदी मतदान हुआ. बात अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की करें तो उस चुनाव से इस चुनाव में मथुरा में करीब 11.67 फीसदी कम मतदान, बागपत में 8.52 और गौतमबुद्धनगर में 6.86 फीसदी कम मतदान हुआ है.

मतदान प्रतिशत में गिरावट को लेकर क्या है एक्सपर्ट की राय?
मतदान प्रतिशत में आई कमी को समझने के लिए हमने CSSP-समाज और राजनीति के अध्ययन के लिए केंद्र के फेलो और प्रोफेसर संजय कुमार से बात की. उन्होंने बताया, “चुनावों में जब प्रतिशत डाउन होता है तब इस बात की कोई श्योरिटी नहीं होती है कि किस सियासी दल को फायदा और किसको नुकसान होगा. अगर इस बार के चुनाव के आंकड़े देखें तो ये साफ नजर आता है कि वोटरों के मन में उदासीनता जरूर है क्योंकि वोटिंग को लेकर चुनाव आयोग के इतने प्रयासों के बाद भी लोग मतदान में उतनी रुचि नहीं दिखा रहे हैं. यानी मतदाताओं पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ रहा है.

उन्होंने आगे कहा, “चुनाव में तीन प्रकार के वोटर होते हैं. पहला किसी पार्टी के प्रति पूरे तरीके से समर्पित वोटर, दूसरा पीछे 2-3 चुनावों में किसी पार्टी को वोट करने वाला वोटर और तीसरा स्विंग वोटर जो हर चुनाव में बदलता रहता है. इसमें एक बात ध्यान देने वाली ये है कि वोटर किसी भी पार्टी से बंधा हुआ नहीं होता है. वोटर मुख्यतः पार्टी की आइडियोलॉजी से जुड़ाव रखता है जिसमें बदलाव होने पर वह भी शिफ्ट होता रहता है. मतदान कम होने पर स्विंग वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं.”

कम मतदान प्रतिशत से किसे होगा फायदा?

प्रोफेसर संजय कुमार ने कहा, “हम इस बात की भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि मतदान में कमी होने पर किस पार्टी को फायदा होगा और किसे नुकसान. मगर हम देश के वर्तमान ट्रेंड के हिसाब से चुनाव में वोटिंग के इस सियासत को जरूर समझ सकते हैं. हाल के दिनों में देश में जो माहौल बना है चाहे वो इलेक्टोरल बॉण्ड को लेकर हो या महंगाई और बेरोजगारी को लेकर सभी मुद्दे सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ ही परसेप्शन बना रहे हैं.”

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