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राजा संत से इच्छाएं जानने की जिद करने लगा। संत समझ गए कि राजा अहंकारी है और ये ऐसे नहीं समझेगा। संत ने कहा कि ठीक है राजन्, मेरे इस छोटे से बर्तन को सोने के सिक्कों से भर दीजिए।



एक घमंडी राजा की कहानी है। पुराने में समय एक राजा बहुत अहंकारी था, जब उसका जन्मदिन आया तो उसने तय किया कि आज वह कम से कम किसी एक व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूरी करेगा। राजा का जन्मदिन था तो राज महल में बड़े आयोजन हो रहे थे।

राज्य की पूरी प्रजा महल में आई हुई थी। प्रजा के साथ ही एक संत भी राज महल पहुंच गए।



सभी लोगों के साथ संत ने भी राजा को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं। राजा ने संत को देखा और कहा कि आज मैं आपकी सारी इच्छाएं पूरी करना चाहता हूं। आप जो चाहे, वह मुझसे मांग सकते हैं। मैं राजा हूं और मैं आपकी सारी इच्छाएं पूरी कर सकता हूं।

संत ने राजा की बात सुनी और कहा कि महाराज मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं ऐसे ही खुश हूं।

राजा ने जोर देते हुए संत से फिर कहा कि आप अपनी इच्छाएं बताएं, मैं उन्हें जरूर पूरी करूंगा।

राजा संत से इच्छाएं जानने की जिद करने लगा।

संत समझ गए कि राजा अहंकारी है और ये ऐसे नहीं समझेगा। संत ने कहा कि ठीक है राजन्, मेरे इस छोटे से बर्तन को सोने के सिक्कों से भर दीजिए।

राजा ने कहा कि ये तो बहुत छोटा काम है। मैं अभी इसे भर देता हूं। राजा ने जैसे ही अपने पास रखे हुए सोने के सिक्के उसमें डाले तो सभी सिक्के गायब हो गए। राजा ये देखकर हैरान हो गया।

राजा ने अपने कोषाध्यक्ष को बुलाकर खजाने से और सोने के सिक्के मंगवाए। राजा जैसे-जैसे उस बर्तन में सिक्के डाल रहा था, वे सब गायब होते जा रहे थे। धीरे-धीरे राजा का खजाना खाली होने लगा, लेकिन वह बर्तन नहीं भरा।

राजा सोचने लगा कि ये कोई मायावी बर्तन है, इस कारण भर नहीं रहा है।

राजा ने संत से पूछा कि कृपया इस बर्तन का रहस्य बताइए? ये भर क्यों नहीं रहा है?

संत ने कहा कि महाराज ये बर्तन मन का प्रतीक है। जिस तरह हमारा मन धन, पद और ज्ञान से कभी भी नहीं भरता है, ठीक उसी तरह ये बर्तन भी कभी भर नहीं सकता। हमें अपनी धन, पद और ज्ञान का घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये चीजें कभी भी इंसान को संतुष्ट नहीं कर सकती हैं। मन को संतुष्ट करना चाहते हैं तो इसके लिए भगवान की भक्ति करनी चाहिए। भक्ति से हमारा मन शांत हो सकता है और इच्छाओं का मोह खत्म हो सकता है। कभी भी घमंड न करें और मन को भक्ति में लगाएं।

संत की बातें सुनकर राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया। उसने संत के सामने अपनी गलती स्वीकार की और संकल्प लिया कि अब से वह घमंड करना छोड़ देगा।

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