---Third party advertisement---

सरकारी और प्राइवेट कर्मचारियों को लेकर Supreme Court ने 2 दिन में दिए 2 बड़े फैसले

Supreme Court - सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी और प्राइवेट कर्मचारियों को लेकर दो दिन में दो बड़े फैसले दिए है। कोर्ट ने कहा है किसी मामले में कोई सूचना छिपाना, झूठी जानकारी और FIR की जानकारी नहीं (Suppression Of Criminal Case) देने का मतलब यह नहीं है कि नौकरी देने वाला मनमाने ढंग से कर्मचारी को बर्खास्त कर सकता है। कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से जानने के लिए खबर के साथ अंत तक बने रहे।


सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की ओर से दो दिनों में बड़े फैसले आए है जो कर्मचारियों के हक से (Employee Rights) जुड़ा हुआ है। ऐसे कई कर्मचारी हैं जो ऐसे मामलों में कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया कि किसी मामले में कोई सूचना छिपाना, झूठी जानकारी और FIR की जानकारी नहीं (Suppression Of Criminal Case) देने का मतलब यह नहीं है कि नौकरी देने वाला मनमाने ढंग से कर्मचारी को बर्खास्त कर सकता है।

वहीं एक दिन पहले एक दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी को अतिरिक्त भुगतान या इंक्रीमेंट गलती से किया गया तो उसके रिटायरमेंट के बाद उससे वसूली इस आधार पर नहीं की जा सकती कि ऐसा किसी गलती के कारण हुआ। सुप्रीम कोर्ट के दो फैसले क्या हैं और उसका क्या असर पड़ेगा।

जब ट्रेनिंग के दौरान पता चली FIR की बात-
सुप्रीम कोर्ट में पवन कुमार की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई हुई। पवन को रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) में कांस्टेबल के पद के लिए चुना गया था। जब पवन की ट्रेनिंग शुरू थी तो उसे इस आधार पर एक आदेश से हटा दिया गया कि कैंडिडेट ने यह खुलासा नहीं किया कि उसके खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति ने जानकारी को छिपाया है या गलत घोषणा की है, उसे सेवा में बनाये रखने की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है लेकिन कम से कम उसके साथ मनमाने ढंग से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की ओर से भरे गए सत्यापन फॉर्म के समय, उसके खिलाफ पहले से ही आपराधिक मामला दर्ज किया गया था, शिकायतकर्ता ने अपना हलफनामा दायर किया था कि जिस शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी वह गलतफहमी के कारण थी। पीठ ने कहा सेवा से हटाने का आदेश उपयुक्त नहीं है और इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) की खंडपीठ द्वारा पारित निर्णय सही नहीं है और यह रद्द करने योग्य है।

24 साल बाद कर्मचारी को नोटिस का क्या मतलब-
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के एक शिक्षक के मामले में फैसला सुनाया। मामला यह था कि शिक्षक ने साल 1973 में स्टडी लीव ली लेकिन उन्हें इंक्रीमेंट देते समय उस अवकाश की अवधि पर विचार नहीं किया गया था। 24 साल बाद 1997 में उन्हें नोटिस जारी किया गया और 1999 में उनके रिटायर होने के बाद उनके खिलाफ वसूली की कार्यवाही शुरू की गई। शिक्षक इसके खिलाफ हाई कोर्ट गए लेकिन राहत नहीं मिली उसके बाद सुप्रीम कोर्ट (supreme court) पहुंचे। अपने पहले के फैसलों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई सरकारी कर्मचारी, विशेष रूप से जो सेवा के निचले पायदान पर है, जो भी राशि प्राप्त करता है, उसे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए खर्च करेगा।

पीठ ने कहा कि लेकिन जहां कर्मचारी को पता है कि प्राप्त भुगतान देय राशि से अधिक है या गलत भुगतान किया गया है या जहां गलत भुगतान का पता चला जल्दी ही चल गया है तो अदालत वसूली के खिलाफ राहत नहीं देगी। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने केरल के एक सरकारी शिक्षक के पक्ष में फैसला सुनाया जिसके खिलाफ राज्य की ओर से गलत तरीके से वेतन वृद्धि देने के लिए वसूली की कार्यवाही शुरू की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी 20 साल की कानूनी लड़ाई को समाप्त कर दिया, वह केरल हाई कोर्ट में केस हार हार गए थे।

Post a Comment

0 Comments